My poem “Benaras” has featured in on page 115 of the latest 2020 edition.


My poem “Benaras” has featured in on page 115 of the latest 2020 edition.
राष्ट्रमाता कस्तूरबा, बापू की प्रेरणा थीं वे,
परिपक्व से पूर्व बाल-विवाह बन्धन में बंधकर
मर्यादाओं का पालन करने वाली कस्तूरबा जागरूक नारी थीं वे।
रंग-भेद की लड़ाई में प्रेरणा बन स्त्रियों को उनके हक़ की पहचान कराई,
चम्पारण सत्याग्रह पर मोर्चा सम्भालकर महिलाओं की आस बँधाती कोई और नहीं, कस्तूरबा ही तो थीं वे।
पत्नी धर्म बखूबी निभाकर स्वाभिमान क्या है, त्याग कहते हैं किसको, आज़ादी आचरण में ढाल जन-जन तक आवाज़ पहुँचती, सत्य अहिंसा पर चलकर करुणा और दया के अर्थ बतलाती
स्वतंत्र विचार व दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रतिमा अपने आप में अनूठा व्यक्तित्व रखती थीं वो
सम्पूर्ण सुख त्यागकर क्रान्ति का पथ अपनाया आज़ादी की ख़ातिर कारावास में रहने वाली साहसी नारी कस्तूरबा ही थीं वे
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर नर-नारियों का मनोबल बढ़ाकर, स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर चरखा घर-घर पहुँचाया आत्मनिर्भर बन, आत्म प्रण करने वाली कस्तूरबा ही थीं वे
भेद-भाव त्याग पिछड़ों की मार्मिकता को जाना दुखियारों का साथ निभाया स्वतंत्रता के लिये साथ बापू के कदम से कदम मिलाकर चलती थीं वे
जब-जब बापू जेल गये अनुसरण उनकी गतिविधियों का कर सभाएँ करती,
मोर्चा सम्भालती कस्तूरबा बापू की प्रेरणा क्रान्तिकारी थीं वे
सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च में आज़ादी का दम भरने, अन्तिम क्षण तक लड़ने वाली
डरबन फ़ीनिक्स में सर्वोदय विद्यालय का सपना सच करने वाली कस्तूरबा ही तो थीं
सरल स्वभाव दृढ़ संकल्प लिए हर मुश्किल का सामना करती प्रेरणा दायक, आज़ादी पाकर दिवंगत ये आत्मा राष्ट्रमाता कस्तूरबा ही तो थीं।
The above poetry of mine “KASTURBA” has been published in ‘SETU on line magazine’ in the June issue, 2020: “https://www.setumag.com/2020/06/2020-Hindi-Poet-3.html?m=1&fbclid=IwAR0CRGccOywQfUXuq8YM1-eWV12JJa8eneXi9lmYlCGd11b1ZKtQRkjk8SI“
Setu is a bilingual monthly journal published from Pittsburgh, USA
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है
वक्रासन बैठकर करने वाले आसनों के अंतर्गत आता है। वक्र संस्कृत का शब्द है, वक्र का अर्थ होता है टेढ़ा, लेकिन इस आसन के करने से मेरुदंड सीधा होता है। हालाँकि शरीर पूरा टेढ़ा ही हो जाता है।
विधि : दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाते हैं। दोनों हाथ बगल में रखते हैं। कमर सीधी और निगाह सामने रखें। दाएँ पैर को घुटने से मोड़कर लाते हैं और ठीक बाएँ पैर के घुटने की सीध में रखते हैं, उसके बाद दाएँ हाथ को पीछे ले जाते हैं, जिसे मेरुदंड के समांतर रखते हैं। कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद अब बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर यह आसन करें।इसके बाद बाएँ हाथ को दाहिने पैर के घुटने के ऊपर से क्रॉस करके जमीन के ऊपर रखते हैं। इसके बाद गर्दन को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा पीछे की ओर देखने की कोशिश करते हैं।
लाभ : इस आसन के अभ्यास से लीवर, किडनी, पेनक्रियाज प्रभावित होते हैं जिससे यह अंग निरोगी रहते हैं। स्पाइनल कार्ड मजबूत होती है। हर्निया के रोगियों को भी इससे लाभ मिलता है।
-Anita Chand
vakraasana
अमलतास”
ख़ूबसूरत नज़ारे आँखों में भरे आज सुबह कुछ ऐसी आई
अमलतास पुलकित खिला बिखरा ज़मीं पर यहाँ-वहाँ पूरे शबाब में
शान उसकी बेमिसाल देखी ऐसी ख़ूबसूरती जो हमेशा से जुदा प्रेम भरी थी
फूलों से लदी-झुकी डालिया झूल रहीं हों जैसे, खेल रही हों मस्त पवन में
अमलतास ने ली अँगड़ाई यौवन ख़ूबसूरती भरे फैलाये ग़लीचा सजाये
मन बहने लगा कहने लगा ये जादुई फ़िज़ा अचानक कहाँ से चली आई
गुफ़्तगुँ किये बिना मैं रह ना पाई पूछा कलियों से मैंने कहाँ छुपी थी इतने दोनों
बसंत आया-गया पतझड़ आया ज़ोर से अपना नूतन भर गया
लूका-छुपी खेल तुमने तपिश को मात किया और धूप में अपना पीला-सुनहेरा-हरा रंग भर दिया
सूरज गर्मी भरे अपना रौद्र रूप जितना दिखलाये अमलतास देख उसे देख खूब खिलखिलाये
चाँद सूरज वश में किए अमलतास अँगड़ाई लिये देख सूरज को इठलाने लगा
अमलतास की डाली भी कुछ कम नहीं निकली जवाब में खरी बता बैठी मुझे
क्या करूँ क्यूँ न रिझाऊँ शर्म मुझको बताने में आये जानती हो! ज्येष्ठ मेरा प्रेमी कहलाये
अमलतास शरमाए खिले ख़ूब धरती सजाये झुकी-झुकी डालियों से सबको लुभाये
आफ़ताब की चमक से एक मैं ही नहीं बहुत गुल खिलते है साथ मेरे आम,लीची मेरे दोस्त मुझसे इसी कड़ी धूप में ही मिलते हैं
प्रेम बन्धन में हम एक साथ खिलते चलते हैं
अमलतास की फूलों भरी डाली ने झूमकर खिलखिला कर साथ सबको रिझाया खूब रिझाये…..!!
अनिता चंद
कुछ दिल ने कहा
अनुराग भरे यथार्थ को वक़्त के आइने में थामें
मुस्कुराती है ज़िन्दगी,
चाँद की रौशनी में सुहाने सफ़र पर निकले दो
दिलों की दास्ताँ है ज़िन्दगी,
माँ के आँचल सी फ़ैली मातृभूमि मेरी,
मनमोहक प्रकृति का दृश्य आँखों में भरे !
“कुछ दिल ने कहा…….!!
कोरोना
ये कैसी चली जंग रे…..कोरोना ने करा तंग ये
घर में रहो बस घर में ही रहो……….!
घर में जी नही जीवित हो रहे हैं हम
मानते हैं कोरोना तूने हिला दिया, डरा दिया है हमको
हिंदुस्तानी हैं इस चुनौती को हिम्मत से स्वीकारते हैं हम
कोरोना तू कमज़ोर न समझ ताक़त को हमारी
भटक गये थे ज़रा पथ से हम
अपने घर आँगने से पुनः तूने मिला दिया हमको
भूल गये थे दौड़ धूप में हम क्या होता है बुज़ुर्गों का साथ
तीन पीढ़ियों का साथ मिलकर पुनः साथ रहना
सिखा दिया है हमको…….
डरना हमारी फ़ितरत नहीं हैं
माने जाते हम शान्ति प्रिय जगत में
तुझे न जीतने देंगे हम
भटक कर सड़कों पर ही तुझे समाप्त होना होगा
फिर मिलेंगे मुसकुरायेंगे हम
कोरोना तुझे न जीतने देंगे हम………!!
30/03/2020
शब्दों को लिखती हूँ
लिखते-लिखते
ज़िन्दगी के अर्थ निकल
आते हैं….!
सोचती हूँ शब्दों को
पिरो रही हूँ मैं
पर शब्द बहाकर मुझे
अपनी दुनिया में ले जाते हैं…!!
“मेरी अभिव्यक्ति”
अतीत
बन्द कमरे में एकत्रित
धूल से लिपटे असबाब सा है
अतीत की यादों का मंज़र,
खुल जाए किबाड़ अगर
हवा के झोंके से टकरा कर
तोड़ देगा सब पहरे
कभी मधुर तो कभी कड़वा
अनुभव का प्रवाह बनकर,
अतीत के हाथों कमज़ोर जो बना
रख लेगा गिरवी भुलाकर
मर्यादा सभी
कभी बदले की आग तो
कभी प्यार की धार बनकर
ना होने दो हावी इसको ख़ुद पर
वरना लिखा जायेगा
जीवन का इतिहास हाथों इसके
जो न समझा कर्म को कल
वो आज गहराइयों को
क्या खाक समझ पायेगा
बन्द कमरे की गर्द को न दो हवा
बना लो महलों में नए झरोखे रोशनी के लिए
चिनवाओ न दीवारे होने दो रूबरू दिलों को
आर-पार आईने जैसा
संभाल गये गर आज तभी
जीवन की गहराइयों को समझ पाओगे
छोड़ दो कल क्या था न खोलो
अतीत के बन्द दरवाज़ों को
अंजुमन अपना सज़ाओ
रहकर काँटों में नाज़ुक फूलों जैसा
तभी उन्नति का मार्ग खोज पाओगे ।।
वर्तमान ही सत्य है !
सत्य ही उन्नति की मार्ग-दर्शक है
-अनिता चंद 2018