अमलतास”
ख़ूबसूरत नज़ारे आँखों में भरे आज सुबह कुछ ऐसी आई
अमलतास पुलकित खिला बिखरा ज़मीं पर यहाँ-वहाँ पूरे शबाब में
शान उसकी बेमिसाल देखी ऐसी ख़ूबसूरती जो हमेशा से जुदा प्रेम भरी थी
फूलों से लदी-झुकी डालिया झूल रहीं हों जैसे, खेल रही हों मस्त पवन में
अमलतास ने ली अँगड़ाई यौवन ख़ूबसूरती भरे फैलाये ग़लीचा सजाये
मन बहने लगा कहने लगा ये जादुई फ़िज़ा अचानक कहाँ से चली आई
गुफ़्तगुँ किये बिना मैं रह ना पाई पूछा कलियों से मैंने कहाँ छुपी थी इतने दोनों
बसंत आया-गया पतझड़ आया ज़ोर से अपना नूतन भर गया
लूका-छुपी खेल तुमने तपिश को मात किया और धूप में अपना पीला-सुनहेरा-हरा रंग भर दिया
सूरज गर्मी भरे अपना रौद्र रूप जितना दिखलाये अमलतास देख उसे देख खूब खिलखिलाये
चाँद सूरज वश में किए अमलतास अँगड़ाई लिये देख सूरज को इठलाने लगा
अमलतास की डाली भी कुछ कम नहीं निकली जवाब में खरी बता बैठी मुझे
क्या करूँ क्यूँ न रिझाऊँ शर्म मुझको बताने में आये जानती हो! ज्येष्ठ मेरा प्रेमी कहलाये
अमलतास शरमाए खिले ख़ूब धरती सजाये झुकी-झुकी डालियों से सबको लुभाये
आफ़ताब की चमक से एक मैं ही नहीं बहुत गुल खिलते है साथ मेरे आम,लीची मेरे दोस्त मुझसे इसी कड़ी धूप में ही मिलते हैं
प्रेम बन्धन में हम एक साथ खिलते चलते हैं
अमलतास की फूलों भरी डाली ने झूमकर खिलखिला कर साथ सबको रिझाया खूब रिझाये…..!!
अनिता चंद
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