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आस ख़ुशियों की

 

आस’ ख़ुशियों की

‘ख़ुशियाँ’ तुम मेरे घर आना ।
तुम्हें नज़दीक से देखे हुआ है, ज़माना ।।
तेरी आहट से मैंने जाना ।
होगा ! आने से तेरे ,
जीवन मेरा, कितना सुहाना ।।
‘दुख’ के एक क्षण में, महसूस होता है,
‘छोटी सी’
एक ‘ख़ुशी’ के क्षण का आना ।।
हर शख़्स को ज़रूरत है, ‘तेरी’
तेरा रिश्ता है , हमसे पुराना ।।
सबकी क़िस्मत में
नहीं होता ,
‘तेरा’ साथ पाना ।।
‘ख़ुशियाँ’ तुम मेरे घर आना
तेरे विशाल से आँचल में,
‘क्षणिक’ सर रखकर मैंने जाना ।
तेरे आने से सुन्दर होगा ,
कितना ! मेरा आशियाना ।।
तेरे स्पर्श का पाना ।
बिना धन के ,
धनवान बन जाना ।।
‘ख़ुशियाँ’ मेरे घर आना ।
हमें हँसाना, और नेकी की राह दिखाना ।
तुम्हें नज़दीक से देखे हुआ है, ज़माना ।।
अनिता चंद

Published inअभिव्यक्ति

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