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कहीं-कहीं तो जन्म से पहले ही मिट जाती हैं “बेटियाँ”

कहीं कहीं तो जन्म से पहले ही मिट जाती हैं
“बेटियाँ”

चाहो जिसे दिलों जान से, निभाओ भी उसे पूरी शान से,
ये पल तुम्हारा है, कल क्या होगा छोड़ दो
उस परमात्मा पर जिसकी तुम करते हो इबादत

देखा ज़रा नज़दीक से तो आश्चर्य हुआ
अरे…..! हम सबकी ही सखी थी वो
क्या, बिंदास जीती थी हवा में उड़ती थी वो,
अचानक बिखरता देखकर उसको,
दिल हाथों में आ गया हो जैसे वो बिलख रही थी,
गुहार लगा रही थी उसकी शिकायत आज ‘रब’ से न थी
आज तो मंज़र ही कुछ ओर था !

पूछ रही थी, उस शख़्स से वो आज सवाल
जिसने खाईं थी क़समें साथ-साथ निभाने की,
पूछ रही थी उससे मायूस होकर वो,
क्यूँ दिखाया सपना तुमने माँ बनने का मुझको ?
जब तुमको बर्बाद ही करना था, तो क्यूँ किया था आबाद मुझको
मेरी नन्ही सी जान को जन्म से पहले ही
क्यूँ ? मार डाला क्या गुनाह था उसका ?

शानॊ-शौकत में लिप्त वो इंसान उसकी पीड़ा से बेपरवाह हो जैसे,
माँ अपनी बेटी की पीड़ा को ममता के आँचल में समेटे,
ज़िगर मसोस के तड़फ रही हो जैसे
किन्हीं जगहों में तो आज भी जन्म से पहले ही मिट जाती हैं
‘बेटियाँ’
किसी को बेटियाँ नहीं, घर का चिराग़ बेटा ही चाहिए
माँ को हक़ नहीं है जन्म देने का भी
इस दुनिया में रहने का भी,

देखा जब एक बेटी को ‘मिस वर्ल्ड’ का ताज पहने तो
याद आ गयीं उन माँ को अपनी खोई नन्ही सी जान बेटियाँ,
जिनके आने से पहले ही मिट जाते हैं नामो निशान आज भी
देखो……..!
आज साबित कर दिया, एक बेटी ने ‘विश्व सुन्दरी’ का
ये ख़िताब जीतकर,
करती हैं नाम ऊँचा, इज़्ज़त बढाती हैं
वतन की शान में, कुल का नाम, रौशन करती हैं
आज हमारी ही परियाँ, हमारी ही बेटियों
बेटी को बचाना है, बेटी को पढाना है, माता पिता का सहारा हैं, हमारी ये बेटियाँ !

*** -अनिता चंद

Published inअभिव्यक्ति

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