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ज़रा अहिस्ता “ऐ ज़िन्दगी”

जिस रफ़्तार से चलती है तू
“ऐ ज़िन्दगी”
साथ तेरे न दौड़ पाऊँगा मैं,
तेरी होड़ का हिस्सा
बन भी गया तो
तेज़ आँधी के भँवर में
फँसकर रहे जाऊँगा मैं!

मेरा वादा है तुझसे
अहिस्ता ही सही मंज़िल तक
ज़रूर हाँ ज़रूर
पहुँच पाऊँगा मैं !!

मुस्कुरा “ऐ ज़िन्दगी”
इस भाग-दौड़ के
सहरा में,
कुछ क्षण तो सुकून के
निकाल सकूँ,
भटक गया अन्धेरों में गर
शाम होने पर हाथ मलकर
रहे जाऊँगा मैं !!

-अनिता चंद   2018

Published inअभिव्यक्ति

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