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ज़िन्दगी और मौत

बेवजह बिन कहे चली जाती है,
सबको सदमे में छोड़ जाती है
जिस देह को हम अपना कहते हैं
उससे भी एक पल में बेवफ़ाई
कर जाती है
“मौत”

इसका न कोई अपना
न ही कोई पराया है
रहस्यमय अध्याय है
हर एक से अनजान है
न जाने कब छल कर जाए
“मौत”

बेपरवाह है पर अनमोल है
हर पल नई सीख है ज़िन्दगी
साथ है साँसों का
तो ख़ुशनुमा है
साथ छोड़ दे तो
यादों का मंज़र है
“ज़िन्दगी”

कुछ अहसास तले,
कुछ अरमान तले
हर दिन नई उमंग में
बिंदास जीते हैं हम

जीना-मरना जब हाथ नहीं
बेफ़िक्र होकर
ज़िन्दगी-मौत के बीच
तालमेल बनाकर
ख़ूबसूरत जीवन बना लेते हैं लोग
आत्मा अमर है इसी का नाम है
“सत्य”
-अनिता चंद 25/02/ 2018
“कौन कहता है मौत आयेगी तो मर जाऊँगा,
मैं तो दरिया हूँ समन्दर में उतर जाऊँगा”

Published inअभिव्यक्ति

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