Skip to content

पक्षियों की बैठक

जंगल में पाया कुछ इस तरह से,
‘बैठक’ थी, पक्षियों की,
तोते, मोर, कबूतर, चिड़ियाँ,
सब पहुँचे बैठक में, बारी-बारी
सरताज बने थे कौएे राजा,
समस्या थी अबकी बार भारी,
बिन पानी न जी पाएँगे,
जान पर आन पड़ी है अब हमारी,
तड़फ रहे थे बिन पानी के,
बिन पानी सब सूँन !
कौआ बोला, यारों !
क्या होगा, यूँ प्यासे मरने से,
उठों अब करनी होगी जंगल में
पानी को खोजने की तैयारी,
मानी बात कौऐ की सबने फिर मिलकर पैंग बड़ाई,
सारा जंगल ख़ाक मारा पर,
पानी की एक बूँद हाथ न पाई
प्यासे थे, व्याकुल थे,
उदासी से वह मुँह लटकाए,
तभी कौएे ने अपनी पैंनी नज़रे यूँ दौडाई
देखा गौर से तो कुछ दूरी पर,
पाया पानी से भरा बर्तन मिट्टी का
तब उम्मीद की एक छोटी सी किरण थी पाई,
समझ में आयी पक्षियों को इंसान की वो समझदारी,
पाया जब घने जंगल में, पानी की छोटी सी क्यारी,
आकाश से उतरे पक्षी धरती पर, आशा भरी उमंग लेकर,
पानी देखा खिल उठे तन-मन,
मिलकर, सबने प्यास बुझाईं और जमकर मौज मनाई,
कोआ बोला ! खामखां,
कहते हैं ! इन्सान में इंसानियत नहीं रही है बाक़ी,
आकर देखो ज़रा क़रीब तो समझ पाओगे,
अभी भी ज़िंदा है, इंसानियत दिलों में,
बस परख कर खोज निकालना ही है बाक़ी
-अनिता चंद

 

Published inअभिव्यक्ति

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *