“मेला”
दादू मुझको मेला है जाना
पिंटू, ऐना, रॉनू, काना
सबको घूमा लाए उनके मामा
मेले में रोचक झूले हैं आए
खिलौने वाले ने खिलौने हैं सजाए
नाचता बन्दर, हाथी, भालू, जोकर,
मेरे दोस्त सब ख़रीद हैं लाए !
पर मुझको तो एक चौकीदार है लाना
हाँ बस सीटी वाला चौकीदार है लाना
दादू चौंके ! और बोले बेटा
क्यूँ तुमको चौकीदार ही है लाना?
दादू ! मेरी माँ जब जाती है दफ़्तर
मुझको अकेले घर में लगता है डर
चौकीदार मेरी रखवाली करेगा
मैं भूतों की बातें करूँ जो वो
सीटी बजाकर डर को छूमंतर कर देगा
जागते रहो जब वो बोलेगा मैं डर भूलकर
मीठी-मीठी नींद में सपने देखूँगा
माँ भी मेरी ख़ुश होकर बिना चिन्ता के
रोज़ जायेगी अपने दफ़्तर
दादू….! मुझको न गेंद चाहिए, न ही चाहिए बन्दर
मुझको तो चाहिए बस, मेरा एक चौकीदार सिकंदर
दादू मुझको मेला है जाना, बस मेला है जाना
***
-अनिता चंद /2018
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