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“वक़्त और इन्तज़ार”

“वक़्त और इन्तज़ार”
इन्तज़ार सुखद हो,
चाहे !
इंतज़ार दुःख का हो,
समय-चक्र से बँधे हैं
दोनों पहलू

वक़्त निकल तो जाता है,
पीछे सीख दे जाता,
एहसास व अनुभव
की छाप बनकर

जो साथ ज़िन्दगी में,
सुख और दुःख की
परछाई बनकर पीछा करते हैं
ज़िन्दगी की यादें बनकर !

-अनिता चंद 2018

Published inअभिव्यक्ति

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