आसमान से उतरी, परी हूँ ‘मैं’ !
माँ-पापा की लाड़ली, हर घर आँगन की रौनक़ हूँ ‘मैं’ !
छोटी-छोटी आशाएँ लिए,
अल्हड़- अठखेलियों में बचपन बीता,
पतंग सी उड़ने लगी हूँ ‘मैं’ !
आसमान को छूने का सपना बुने,
ज़िम्मेदारियों को समझते सीखते
घर-बाहर के कामों में, कंधे से कंधा
मिलाकर, हाथ बटाने लगी हूँ परी हूँ,
परी हूँ ‘मैं’ !!
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बदल गया हर पहलू मेरा!
बदला-बदला सा है जहान,
‘परी थी! अब पिया की संगिनी हूँ ‘मैं’
बचपन गया, छूटा आँचल माँ का,
आज अपने आँचल में, वही प्यार समेटे हूँ ‘मैं’
जो सुन्दरता थी कभी ‘परी मुखड़े’ की अब
हुबहू सुन्दरता अपने ‘हृदय’ में उतारे स्नेह उँडेलती हूँ ‘मैं’
परिवार-आशियाने बसते हैं ‘मुझमें’
‘परी थी! अब सम्पूर्ण ‘नारी’ हूँ
गौरवमय नारी हूँ हाँ! स्नेहमय नारी हूँ ‘मैं’ !!
🌾अनिता चंद 🌾