उस माँ को शत शत नमन !
जिसने देश की ख़ातिर,
अपने जिगर के टुकड़े को खोया,
वीरों को सरहद पर भेजने वाली,
कोई साधारण माँ नहीं,
देव्य शक्ति ही हो सकती है,
उस माँ को नमन 🙏🏾शत शत नमन!
Live every moment... Love beyond words... Laugh everyday...
उस माँ को शत शत नमन !
जिसने देश की ख़ातिर,
अपने जिगर के टुकड़े को खोया,
वीरों को सरहद पर भेजने वाली,
कोई साधारण माँ नहीं,
देव्य शक्ति ही हो सकती है,
उस माँ को नमन 🙏🏾शत शत नमन!
“क़लम की स्याही से दिलों के दाग़ मिट गए!
खत में लिखे अल्फ़ाज़ों से बुझते चिराग़ जल गए,
रखा है छोटे से लिफ़ाफ़े में पैग़ाम प्यार का,
स्याही की महक से, दिलों में गुलज़ार खिल गए,
इंतेहाँ ख़त्म हुई, आने से खत उनका,
बिना देखे ही उनको, उनके दीदार मिल गए,
पढ़ते हैं बार-बार और कई-कई बार उलट पलट के,
स्याही से पिरोये मोती से अल्फ़ाज़ों को,
जो पूछ लिया एक बार कैसे हैं? मिज़ाज आपके,
झूम उठा दिल अरमानों भरा, ख़त्म हुई दूरियाँ पल भर में,
एक ही खत में जैसे जन्मों के सुकून मिल गए।
-अनिता चंद
मंज़िलों पर पहुँचों तो समझना!
कर रहा है, प्रार्थना कोई तुम्हारे लिए,
प्रार्थना का न कोई धर्म, न वर्ण,
न रिश्ता, न ही कोई पैमाना होता है,
प्रार्थना का रिश्ता तो ‘दिलों का दिल से होता है,
दिल से प्रार्थना करने वालों के कोई निशा नहीं होते,
ये तो कभी आँखों से, तो कभी आँसू से बयान होता है,
झुकता है जब, सिर शिद्दत से आगे उसके,
क़बूल हो जाएें ‘दुआ’ न जाने कब
इसका न कभी इज़हार होता है
महसूस होता है, नज़रों में अपनों की,
लग जायें कब किसके,
मुक़दर को ‘दुआऍ’ किसकी
पाने वाला भी उससे अनजान होता है,
क़िस्मत से मिलता है साथ,
दुआओं के दम भरने वालों का,
संजोए रखना ये ख़ज़ाना, ऐ मेरे अज़ीजॊं
इसका साथ मिलना न बार-बार होता है
बहती हैं दुआएें ख़ुशनुमा हवा बनकर
मुक़ाम पर जब पहुँचों तो समझना
कर रहा है, प्रार्थना कोई तुम्हारे लिए,
क्योंकि, प्रार्थना करने वालों का ,
साक्षात्कार नहीं होता,
‘प्रार्थना’ का प्रवाह तो,
आशीर्वाद और प्यार में होता है !!
-अनिता चंद
जंगल में पाया कुछ इस तरह से,
‘बैठक’ थी, पक्षियों की,
तोते, मोर, कबूतर, चिड़ियाँ,
सब पहुँचे बैठक में, बारी-बारी
सरताज बने थे कौएे राजा,
समस्या थी अबकी बार भारी,
बिन पानी न जी पाएँगे,
जान पर आन पड़ी है अब हमारी,
तड़फ रहे थे बिन पानी के,
बिन पानी सब सूँन !
कौआ बोला, यारों !
क्या होगा, यूँ प्यासे मरने से,
उठों अब करनी होगी जंगल में
पानी को खोजने की तैयारी,
मानी बात कौऐ की सबने फिर मिलकर पैंग बड़ाई,
सारा जंगल ख़ाक मारा पर,
पानी की एक बूँद हाथ न पाई
प्यासे थे, व्याकुल थे,
उदासी से वह मुँह लटकाए,
तभी कौएे ने अपनी पैंनी नज़रे यूँ दौडाई
देखा गौर से तो कुछ दूरी पर,
पाया पानी से भरा बर्तन मिट्टी का
तब उम्मीद की एक छोटी सी किरण थी पाई,
समझ में आयी पक्षियों को इंसान की वो समझदारी,
पाया जब घने जंगल में, पानी की छोटी सी क्यारी,
आकाश से उतरे पक्षी धरती पर, आशा भरी उमंग लेकर,
पानी देखा खिल उठे तन-मन,
मिलकर, सबने प्यास बुझाईं और जमकर मौज मनाई,
कोआ बोला ! खामखां,
कहते हैं ! इन्सान में इंसानियत नहीं रही है बाक़ी,
आकर देखो ज़रा क़रीब तो समझ पाओगे,
अभी भी ज़िंदा है, इंसानियत दिलों में,
बस परख कर खोज निकालना ही है बाक़ी
-अनिता चंद
संजोया था जो कल्पना में, उसका स्पर्श जब पाया मैंने,
कल्पनाओं से बातें करने लगी मैं,
हर राज़ को साँझा करके तुमसे
अब ख़ुद से स्नेह करने लगी मैं,
ये साँसे मेरी हैं, इसमें कल्पनाएँ तेरी है,
हर क्षण स्पर्श के एहसास के सपने बुनने लगी मैं,
दिन सप्ताह में, सप्ताह महीनों में बीतते-बिताते,
अपनी पलकों में सपनों की उड़ान भरने लगी मैं,
क्या होगा? कैसा होगा?
हर पल का ख़्याल रखते-रखते,
जिसने ये अवसर दिया, उस परमात्मा का
दिल ही दिल में शुक्रिया अदा करने लगी मैं,
समय आया जब तुझसे मिलने का,
तो उस क्षण की ‘वेदना’ के एहसास से ही डरने लगी मैं,
बचा रखा था ‘तुम्हें’ कठिनाइयों से, पाँचो ‘तत्वों’
धरती, आकाश, वायु ,जल, अग्नि से अभी तक,
माँ, मोह छोड़ इन तत्वों से रुबरू ‘तुमको’ अब कराना है
इन तत्वों के साथ तुम्हें अपना ‘अस्तित्व’ भी तो बनाना है
ये बात न कोई समझ पाता है,
ऐसा नहीं ये ‘वेदना’ बस मुझको ही है
तुमने भी तो, अपनी पीड़ा का,
मुझसे अलग होने पर, रो-रोकर एहसास कराया है
वो दिन ‘आख़िरी’ और ‘पहला’ था मातृत्व के लिए,
जब तुम रोए, जन्म लेने में, और तुम्हारे रोने को
आनंदित होकर, हर्षोल्लास से गले लगाया मैंने,
उस अनमोल पल ‘दुआ’ निकली हृदय से,
जीवन में कोई कष्ट न छू पाए तुमको,ये सोचकर
सुखद भावनाओं में स्वाँस भरने लगी मैं,
ये फ़रिश्ता है, या धड़कन है मेरी
ये फ़रिश्ता है, या धडकन है मेरी,
ये सोचकर हर्षोंउल्लास से प्रसन्नमुग्ध होने लगी मैं,
ख़ुद से स्नेह करती थी अब तक
पर अब! तुमसे प्यार करने लगी मैं,
स्पर्श मेरी कल्पना का सपनों में संजोया था, मैंने
अपने हाँथों में महसूस कर आज तुमको
सुखद ‘स्पर्श’ ममता का ,
ख़ुद को सम्पूर्ण समझने लगी मैं !
–अनिता चंद